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शुभम नेगी की कविताएँ
अख़बार
दरवाज़ा खोलने से पहले ही
रेंगकर घुसती है अंदर
सुराख़ में से
बाहर दुबके अख़बार पर बिछी
ख़ून की बू
अख़बार वाला छोड़ जाता है आजकल
मेरे दरवाज़े पर
साढ़े चार रुपये...
रेडियो
हमारे मुन्ने को चाह थी रेडियो ख़रीदें
कि अब हमारे यहाँ फ़राग़त की रौशनी थी
मैं अपनी देरीना तंग-दस्ती की दास्ताँ उसको क्या सुनाता
उठाके ले आया...
ख़बरनवीस
वह अजीब-सा ख़बरनवीस है
दिन रात बीनता फिरता है ख़बरें
हत्या बलात्कार चोरी डकैती की
दुर्घटनाओं का साक्षी बनता
बारात और वारदात को
एक ही तरीके से सनसनीखेज़ बनाता
वह...