Tag: Prison
क़ैद परिंदे का बयान
तुमको अचरज है—मैं जीवित हूँ!
उनको अचरज है—मैं जीवित हूँ!
मुझको अचरज है—मैं जीवित हूँ!
लेकिन मैं इसीलिए जीवित नहीं हूँ—
मुझे मृत्यु से दुराव था,
यह जीवन जीने...
नेल्सन मंडेला
छोटी-सी जगह से बड़े-बड़े सपने देखे जा सकते हैं
उसने बचपन में पिता से सुनी थी यह बात
तभी तो उसने देखा था
जेल की आठ बाई सात की...
दीवारें
जिस दिन हमने तोड़ी थीं पहली दीवारें,
(तुम्हें याद है?)
छाती में उत्साह
कंठ में जयध्वनियाँ थीं।
उछल-उछलकर गले मिले थे,
फिरे बाँटते बड़ी रात तक हम बधाइयाँ।
काराघर में फैल...
जेल
'Jail', a poem by Vijay Rahi
मैं जानता था
पर कितना कम जानता था
कि जेल सिर्फ़ एक कोठरी का नाम है।
बचपन में गाँव के
हमारे जैसे बच्चों...