छोटी-सी जगह से बड़े-बड़े सपने देखे जा सकते हैं
उसने बचपन में पिता से सुनी थी यह बात
तभी तो उसने देखा था
जेल की आठ बाई सात की तंग कालकोठरी में
अफ़्रीकियों की आज़ादी का विशाल सपना

उम्मीद के उजाले का एक लम्हा
भारी होता है अंधेरे के सौ साल पर
इसी यक़ीन पर उसने काट दी सत्ताईस साल की क़ैद
उस कालकोठरी में
जहाँ सूरज की रोशनी भी छिपकर आती थी

कोयला खदान में पत्थर तोड़ते-तोड़ते
उसका हौसला वज्र का हो गया था
पत्थरों पर पड़ती रोशनी से
उसकी आँखें हो गई थीं कमज़ोर
लेकिन दृष्टि मज़बूत होती गई
वह जेल की लम्बी दीवारों के पार देख लेता था
कालों की दुनिया में उजाला आने वाला है

छह फ़ीट एक इंच लम्बा महामानव
क़ैद की कोठरी में मीलों चलता था रोज़
उसे पता था कि ग़ुलामी का सफ़र
इतनी जल्दी ख़त्म नहीं होता
और मंज़िल पर पहुँचने से पहले
देह को थकने की इजाज़त नहीं है
तन्हाई के इन पलों में
उसके साथ रहते थे महात्मा गाँधी
विचार बनकर
तभी उसने कहा था—
आज़ादी के बराबर पलड़े में
सिर्फ़ एक चीज़ रखी जा सकती है
वह है सिर्फ़ आज़ादी!

Book by Pratap Somvanshi: