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परिभाषा पीड़ की
तुम्हारी व्यस्तताओं का मैं हुआ अभ्यस्त
रह गया हूँ केवल एक सरन्ध्र हृदय का स्वामी
जिससे रित रही हैं प्रतिपल तुम्हारे लौटने की आशाएँ
और भर रही...
हिमा! तुम्हारे पाँव
'Hima! Tumhare Paanv', a poem for Hima Das by Shweta Rai
ऊर्जा से भरे नील गाय के पाँव
जैसे तुम्हारे पाँव
जानते हैं उस गति को
जिस गति...
कालान्तरण
"तुम्हारे चिकने शरीर पर हाथ फेरते समय
शरीर की नसें झनझनाने की जगह
रसोई में रखे खाली डिब्बे बजने लगते हैं
जब भी गीत गुनगुनाने के लिए हिलाता हूँ होंठ
मुँह से प्रसारित होने लगते हैं बाजार भाव..."