तुम मैदानों और पहाड़ों के बीच झूलते हो
किसी अदृश्य झूले में
तुम में आग दहकती है जीवन की
पहाड़ दर पहाड़ की चढ़ाई करके पहुँच जाते हो
जीवन की तलाश में समूचे रेवड़ के साथ
तुम समझते हो जानवरों की भाषा भी
भाषाओं की तरह ही
तुम्हारी आँखों में बस्ती है तुम्हारे जंगलों की
तुम्हारी आवाज़ में झलकते हैं
नदियों, झरनों, जंगलों और मौसमों के संगीत
ग़ज़ब के बुनकर, कारीगर हो तुम
अपने हुनरमंद हाथों से समझा देते हो प्रकृति की बुनावट
इन पहाड़ों और जंगलों में बसने और बसाने का शऊर कमाया है तुमने ख़ुद पहाड़ और जंगल होकर ही
तुम पर नज़र रखती है एक आदमखोर व्यवस्था
तुम समझ रहे हो न इस ख़तरे को भी?
तुम्हारे पत्थर, पहाड़ भी चोरी हो रहे हैं
तुम्हारे पानी के दाम लगे हैं
तुम अपने जंगलों और जानवरों की तरह ही दुर्लभ जाति क़रार दिए गये हो आंकड़ों में
जिसके सरंक्षण की बात सुर्ख़ियों में है
और ये सब एक आज़ाद धरती पर
एक आज़ाद समय में हो रहा है
लुप्तप्राय जाति बनने से पहले ही शिनाख़्त करो ख़तरों की भी ठीक उसी तरह
जैसे तुमने शिनाख़्त की है दुर्गम रास्तों की
जो तुम्हें पहुँचाते हैं अपने घर
ज़िन्दा, सुरक्षित।
—
अनुराधा अनन्या
7-03-2019