‘Udasi’, Hindi Kavita by Pallavi Mukherjee
उदास हो तुम
कि धरती
दूर-दूर तक
प्यासी है
गर्म रेत में
धँस रहे हैं पाँव
उदास हो तुम
कि हलक की प्यास
कड़ी होती जा रही है
मिट्टी की तरह
जब बूँद भर
पानी को तरसती
मिट्टी की देह
पपड़ी होते
होंठों की मुस्कान
छीन लेती है
उदास हो तुम
कि तुम्हारा मन
थोड़े से
हरेपन को देखकर हरियाता है
और नदी देखकर
बहने लगता है
सुनो
तुम्हारी उदासी
घेर रही है मुझे
चिपकती जा रही है
लिबास की तरह
जिसे झटकने का
हुनर मुझमें नहीं है
मैं
उदासी के साथ
सिर्फ़
उदास हो सकती हूँ
मेरे
हाथों का ख़ालीपन
तुम्हें भी उदास कर सकता है!
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