वो चुप हो गए मुझसे क्या कहते-कहते
कि दिल रह गया मुद्दआ कहते-कहते

मेरा इश्क़ भी ख़ुदग़रज़ हो चला है
तेरे हुस्न को बेवफ़ा कहते-कहते

शब-ए-ग़म किस आराम से सो गए हैं
फ़साना तेरी याद का कहते-कहते

ये क्या पड़ गई ख़ू-ए-दुश्नाम तुमको
मुझे ना-सज़ा बरमला कहते-कहते

ख़बर उनको अब तक नहीं, मर-मिटे हम
दिल-ए-ज़ार का माजरा कहते-कहते

अजब क्या जो है बद-गुमाँ सब से वाइज़
बुरा सुनते-सुनते, बुरा कहते-कहते

वो आए मगर आए किस वक़्त ‘हसरत’
कि हम चल बसे मरहबा कहते-कहते!

हसरत मोहानी की ग़ज़ल 'चुपके-चुपके रात दिन'

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हसरत मोहानी
मौलाना हसरत मोहानी (1 जनवरी 1875 - 1 मई 1951) साहित्यकार, शायर, पत्रकार, इस्लामी विद्वान, समाजसेवक और आज़ादी के सिपाही थे।