‘Wo Ladka Kashmir Tha’, a poem by Usha Dashora

1

पहले
अकेले चार सिगरेट फूँकीं
आँखों में लाल डोरे पकड़े
आस-पास वाले पड़ोस की बाड़ियों में
चूहे मारने की दवा छितराकर
ठण्डी पहाड़ियों को आँख मारता और सुट्ट से निकल जाता
(बर्फ़ की पिघलती आँखें अकेलेपन की पर्यायवाची हैं)

2

फिर वो आवारा लड़का
किसी आइटम सॉंग के फेफड़ों की गर्मी गुनगुनाता
दिनभर मोहल्ले की छाती पर
दोनों हाथ छोड़े साइकिल चलाता
तब हर छोटी-बड़ी लड़की उसकी ओर चुम्बन उछालती
और वो प्रेमिका की पीठ पर गढ़ा नीला नाख़ून बनता
(नदी पैर से लिपटकर चूमती है पार करना कभी)

3

उसका हर विचार पोलियो ग्रस्त लगता
विकृत महाविकृत
जैसे जानबूझकर किसी ने अबोध बचपन में
उसे स्वस्थ पोलियो ख़ुराक से वंचित किया हो
या मंथरा का कोई षडयंत्र हो

पहली घुट्टी
हाँ मेरी दादी का जन्म की पहली घुट्टी में परम विश्वास था
(कभी किसी से उम्मीद मुहासों सी बदसूरत बनती है सम्भलना)

4

यही षडयंत्र (तुम इसे पहली घुट्टी भी बोल सकते हो)
उसमें शांति से
आवारा रोपनी कर गया
आग वाले बीज प्रत्येक कोशिका में यहाँ-वहाँ
जमा गया
कि कभी उसे विस्फोट सा फोड़ा जा सके
(शांति वार्ताओं में ज्वालामुखी के बच्चे सोते हैं)

5

नगर के कई सारे
बोलते स्कूलों को फाँसी
और महाविद्यालयों पर पेट्रोल बम की साजिश के बाद
वह किसी रिमोट कंट्रोल से ऑन होकर
टीवी चैनल पर पार्टी प्रवक्ता बन
बड़बड़ाती नाच करता
(अब मात्र टीवी चैनल ही लोकतंत्र है क्यों नहीं मान लेते)

6

फिर उसी रिमोट के बटन से
कबीर की जात तौलता
महावीर के अपरिग्रह की क्रूर हत्या कर
गांधी की अ-हिंसा को मिट्टी पर लिखता
‘अ’ उपसर्ग को जूते से रगड़कर
हिंसा वाली मिट्टी हवा में उछालता
अविराम हँसता
(औरतें अपने मर्दों से पिटती हैं प्लीज़ इसे हिंसा में शामिल न किया जाए)

7

अक्सर कई जिलों के भौगोलिक नक्शों को
दो मोटी कील से ठोक-ठाक सूली पर चढ़ा देता
गणित के क्षेत्रफल और पेरीमीटर के सवालों के पैर
तीखी आरी से काट देता
पर अढ़ाई किलो टमाटर वाली जोड़ का हिसाब उसे पता था
(हिसाब और बँटवारा शिव की खुली तीसरी आँख हैं)

8

जब पिता आँखें लाल करते
तब दोनों हाथों में चीख़ते गुर्दे फँसा
उनसे हर बहस के अंत में कहता
तो पैदा क्यों किया था?

दूध सूखी छाती सिकोड़कर माँ कहती तो तू
मर क्यों नहीं जाता?
आँसू में हिचकियाँ भर माँ की पीठ देखता
गले लगाने की आस में

न कभी माँ पलटी
न कभी पिता लौटे
और सारे दोस्त कॉरपरेट की बड़ी नौकरियों के बाद
बीवी बच्चों में रम गए
(कुछ लड़के प्रेमिका में माँ ढूँढते हुए आज भी रोते हैं)

9

वो अकेला
निर्वासित
गर्भवती सीता बन भीतर ही भीतर सुलगता
और पूछे प्रश्न का उत्तर
जेब में भरे पत्थरों से देता

बरस जलने, सुलगने के बाद
सुना है वो लड़का आजकल
एक बड़े से डिब्बे में बंद होकर
और केसर की खेती की नई टेक्नोलॉजी सीख रहा है
रात को सोने से पहले कल्हण की राज तरंगिनी को बाँचता है
मेरा कवि रात के थके पैरों में
मरहम लगाता, यही उसके इश्क़ की परिभाषा है
(इस बार शांति का नोबल किशोर सुधार-गृह वालों को मिलेगा शर्तया)

यह भी पढ़ें: गौरव अदीब की कविता ‘कश्मीर के बच्चे के नाम’

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