जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना,
उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है।

जिस वक़्त जीना ग़ैर मुमकिन सा लगे,
उस वक़्त जीना फ़र्ज़ है इंसान का,
लाज़िम लहर के साथ है तब खेलना,
जब हो समुन्द्र पे नशा तूफ़ान का
जिस वायु का दीपक बुझाना ध्येय हो
उस वायु में दीपक जलाना धर्म है।

हो नहीं मंज़िल कहीं जिस राह की
उस राह चलना चाहिए इंसान को
जिस दर्द से सारी उम्र रोते कटे
वह दर्द पाना है ज़रूरी प्यार को
जिस चाह का हस्ती मिटाना नाम है
उस चाह पर हस्ती मिटाना धर्म है।

आदत पड़ी हो भूल जाने की जिसे
हर दम उसी का नाम हो हर साँस पर
उसकी ख़बर में ही सफ़र सारा कटे
जो हर नज़र से हर तरह हो बेख़बर
जिस आँख का आँखें चुराना काम हो
उस आँख से आँखें मिलाना धर्म है।

जब हाथ से टूटे न अपनी हथकड़ी
तब माँग लो ताकत स्वयं ज़ंजीर से
जिस दम न थमती हो नयन सावन झड़ी
उस दम हँसी ले लो किसी तस्वीर से
जब गीत गाना गुनगुनाना जुर्म हो
तब गीत गाना गुनगुनाना धर्म है।

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गोपालदास नीरज
(4 जनवरी 1925 - 19 जुलाई 2018), बेहद लोकप्रिय कवि, गीतकार एवं ग़ज़लकार।

2 COMMENTS

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