1

मेरा घर
दो दरवाज़ों को जोड़ता
एक घेरा है
मेरा घर
दो दरवाज़ों के बीच है
उसमें किधर से भी झाँको
तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होगे
तुम्हें पार का दृश्य दिख जाएगा
घर नहीं दिखेगा।
मैं ही मेरा घर हूँ।
मेरे घर में कोई नहीं रहता
मैं भी क्या मेरे घर में रहता हूँ
मेरे घर में जिधर से भी झाँको…

2

तुम्हारा घर वहाँ है
जहाँ सड़क समाप्त होती है
पर मुझे जब सड़क पर चलते ही जाना है
तब वह समाप्त कहाँ होती है?
तुम्हारा घर…

3

दूसरों के घर
भीतर की ओर खुलते हैं
रहस्यों की ओर
जिन रहस्यों को वे खोलते नहीं।
शहरों में होते हैं
दूसरों के घर
दूसरों के घरों में
दूसरों के घर
दूसरों के घर हैं।

4

घर
है कहाँ जिनकी हम बात करते हैं
घर की बातें
सबकी अपनी हैं
घर की बातें
कोई किसी से नहीं करता
जिनकी बातें होती हैं
वे घर नहीं हैं।

5

घर
मेरा कोई है नहीं,
घर मुझे चाहिए :
घर के भीतर प्रकाश हो
इसकी भी मुझे चिन्ता नहीं है;
प्रकाश के घेरे के भीतर मेरा घर हो-
इसी की मुझे तलाश है।
ऐसा कोई घर आपने देखा है?
देखा हो
तो मुझे भी उसका पता दें
न देखा हो
तो मैं आपको भी
सहानुभूति तो दे ही सकता हूँ
मानव होकर भी हम-आप
अब ऐसे घरों में नहीं रह सकते
जो प्रकाश के घेरे में हैं
पर हम बेघरों की परस्पर हमदर्दी के
घेरे में तो रह ही सकते हैं।

अज्ञेय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर बम बनाते हुए पकड़े गये और वहाँ से फरार भी हो गए। सन् 1930 ई. के अन्त में पकड़ लिये गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।