घोड़े के पास
सिर्फ़ ‘हाँ’ में हिलाने के लिए सिर है
नर्म पीठ है
और दिशाहीन दौड़ के लिए चार टाँगें हैं
वह दौड़ता है सवार के हुक्म पर
रुकता है सवार की मर्ज़ी पर
हिनहिनाता है सवार के इशारे पर
बैठता है, कान उठाता है
आँखें खोलता है—सवार की हुंकार पर
उसकी अपनी दौड़ है
हरी या सूखी घास का ढेर
थोड़ा-सा छोलिया
पेट-भर पानी
उसके पैरों में नालें हैं
पीठ पर टिकी है काठी
मुँह में पड़ी है लोहे की लगाम
घोड़े का सदियों से वास्ता है
नोकदार जूती वाले सवार से
मुलायम मूठ वाले चाबुक से
कभी नरम, कभी गरम
सवार की कड़क से।