हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
शब्दकोश में प्रिये, और भी
बहुत गालियाँ मिल जाएँगी
जो चाहे सो कहो, मगर तुम
मेरी उमर की डोर गहो तुम!
हाय, न बूढ़ा मुझे कहो तुम!
क्या कहती हो-दाँत झड़ रहे?
अच्छा है, वेदान्त आएगा।
दाँत बनाने वालों का भी
अरी भला कुछ हो जाएगा।
बालों पर आ रही सफ़ेदी,
टोको मत, इसको आने दो।
मेरे सिर की इस कालिख को
शुभे, स्वयं ही मिट जाने दो।
जब तक पूरी तरह चाँदनी
नहीं चाँद पर लहराएगी,
तब तक तन के ताजमहल पर
गोरी नहीं ललच पाएगी।
झुकी कमर की ओर न देखो
विनय बढ़ रही है जीवन में,
तन में क्या रक्खा है, रूपसि,
झाँक सको तो झाँको मन में।
अरी पुराने गिरि-श्रृंगों से
ही बहता निर्मल सोता है,
कवि न कभी बूढ़ा होता है।
मेरे मन में सुनो सुनयने
दिन भर इधर-उधर होती है,
और रात के अँधियारे में
बेहद खुदर-पुदर होती है।
रात मुझे गोरी लगती है,
प्रात मुझे लगता है बूढ़ा,
बिखरे तारे ऐसे लगते
जैसे फैल रहा हो कूड़ा।
सुर-गंगा चम्बल लगती है,
सातों ऋषि लगते हैं डाकू,
ओस नहीं, आ रहे पसीने,
पौ न फटी, मारा हो चाकू।
मेरे मन का मुर्ग़ा तुमको
हरदम बाँग दिया करता है,
तुम जिसको बूढ़ा कहतीं, वह
क्या-क्या स्वाँग किया करता है।
बूढ़ा बगुला ही सागर में
ले पाता गहरा गोता है।
कवि न कभी बूढ़ा होता है।
भटक रहे हो कहाँ?
वृद्ध बरगद की छाँह घनी होती है,
अरी, पुराने हीरे की क़ीमत
दुगुनी-तिगुनी होती है।
बात पुरानी है कि पुराने
चावल फार हुआ करते हैं,
और पुराने पान बड़े ही
लज्जतदार हुआ करते हैं।
फ़र्म पुरानी से ‘डीलिंग’
करना सदैव चोखा होता है,
नई कम्पनी से तो नवले
अक्सर ही धोखा होता है।
कौन दाँव कितना गहरा है,
नया खिलाड़ी कैसे जाने?
अरी, पुराने हथकण्डों को
नया बाँगरू क्या पहचाने?
किए-कराए पर नौसिखिया
फेर दिया करता पोता है।
कवि न कभी बूढ़ा होता है।
वर्ष हज़ारों हुए राम के
अब तक शेव नहीं आयी है!
कृष्णचंद्र की किसी मूर्ति में
तुमने मूँछ कहीं पायी है?
वर्ष चौहत्तर के होकर भी
नेहरू कल तक तने हुए थे,
साठ साल के लालबहादुर
देखा गुटका बने हुए थे।
अपने दादा कृपलानी को
कोई बूढ़ा कह सकता है?
बूढ़े चरणसिंह की चोटें,
कोई जोद्धा सह सकता है?
मैं तो इन सबसे छोटा हूँ
क्यों मुझको बूढ़ा बतलातीं?
तुम करतीं परिहास, मगर
मेरी छाती तो बैठी जाती।
मित्रो, घटना सही नहीं है
यह क़िस्सा मैना-तोता है।
कवि न कभी बूढ़ा होता है।