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भाषा में पुकारे जाने से पहले वह एक चिड़िया थी बस
और चिड़िया भी उसे हमारी भाषा ने ही कहा
भाषा ही ने दिया उस पेड़ को एक नाम
पेड़ हमारी भाषा से परे सिर्फ़ एक पेड़ था
और पेड़ भी हमारी भाषा ने ही कहा उसे
इसी तरह वे असंख्‍य नदियॉं झरने और पहाड़
कोई भी नहीं जानता था शायद
कि हमारी भाषा उन्‍हें किस नाम से पुकारती है

उन्‍हें हमारी भाषा से कोई मतलब न था
भाषा हमारी सुविधा थी
हम हर चीज़ को भाषा में बदल डालने को उतावले थे
जल्‍दी से जल्‍दी हर चीज़ को भाषा में पुकारे जाने की ज़िद
हमें उन चीज़ों से कुछ दूर ले जाती थी
कई बार हम जिन चीज़ों के नाम जानते थे
उनके आकार हमें पता नहीं थे
हम सोचते थे कि भाषा हर चीज़ को जान लेने का दरवाज़ा है
इसी तर्क से कभी-कभी कुछ भाषाऍं अपनी सत्ता क़ायम कर लेती थीं
कमज़ोरों की भाषा कमज़ोर मानी जाती थी और वह हार जाती थी
भाषाओं के अपने-अपने अहँकार थे

पता नहीं पेड़ों, पत्‍थरों, पक्षियों, नदियों, झरनों, हवाओं और जानवरों के पास
अपनी कोई भाषा थी कि नहीं
हम लेकिन लगातार एक भाषा उनमें पढ़ने की कोशिश करते थे
इस तरह हमारे अनुमान उनकी भाषा गढ़ते थे
हम सोचते थे कि हमारा अनुमान ही सृष्टि की भाषा है
हम सोचते थे कि इस भाषा से
हम पूरे ब्रह्माण्ड को पढ़ लेंगे!

राजेश जोशी की कविता 'बच्चे काम पर जा रहे हैं'

Book by Rajesh Joshi:

राजेश जोशी
राजेश जोशी (जन्म १९४६) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी साहित्यकार हैं। राजेश जोशी ने कविताओं के अलावा कहानियाँ, नाटक, लेख और टिप्पणियाँ भी लिखीं। साथ ही उन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर तथा कुछ लघु फिल्मों के लिए पटकथा लेखन का कार्य भी किया। उनके द्वारा भतृहरि की कविताओं की अनुरचना भूमिका "कल्पतरू यह भी" एवं मायकोवस्की की कविता का अनुवाद "पतलून पहिना बादल" नाम से किए गए है। कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अँग्रेजी, रूसी और जर्मन में भी उनकी कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। राजेश जोशी के चार कविता-संग्रह- एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी और दो पंक्तियों के बीच, दो कहानी संग्रह - सोमवार और अन्य कहानियाँ, कपिल का पेड़, तीन नाटक - जादू जंगल, अच्छे आदमी, टंकारा का गाना।