हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए
दिल की जानिब नज़र है क्या कहिए
फिर वही रहगुज़र है क्या कहिए
ज़िंदगी राह पर है क्या कहिए
हुस्न ख़ुद पर्दा-वर है क्या कहिए
ये हमारी नज़र है क्या कहिए
आह तो बेअसर थी बरसों से
नग़्मा भी बेअसर है क्या कहिए
हुस्न है अब न हुस्न के जल्वे
अब नज़र ही नज़र है क्या कहिए
आज भी है ‘मजाज़’ ख़ाक-नशीं
और नज़र अर्श पर है क्या कहिए!