इस बार बसन्त के आते ही
मैं पेड़ बनूँगा एक बूढ़ा
और पुरवा के कान में फिर
जाकर धीरे से बोलूँगा-
“शरद ने देखो इस बारी
अच्छे से अपना काम किया
जर्जर सूखे जो पत्ते थे
कितने सालों के बोझ लिए
जो व्यर्थ टंगे थे शाखों पर
और मुझे झुकाकर रखते थे
कोई पीला सा, कोई सूख चुका
कोई मुरझाए एक मन जैसा
कोई बस थोड़ा उलझा-उलझा
प्रतीक्षा में एक झोंके की
एक ही झटके में सबको
देखो मिट्टी में मिला दिया..
अब मेरी सारी शाखाएँ
जो आतुर हैं फिर जन्मने को
उन सब ने फिर भर जाने को
हरियाली से सन जाने को
राहें तेरी ही ताकी हैं..
अब मेरी सारी शाखाएँ
इक आस लगाकर बैठेंगी
कुछ स्वप्न पालकर बैठेंगी
वे बाँह खोलकर बैठेंगी
इस शीत ऋतु के जाते ही..”
इस बार बसन्त के आते ही..
चित्र श्रेय: Alessio Lin