आम रास्ता
ख़ास आदमी…
हट जा, हट जा, हट जा, हट जा।
ख़ास रास्ता
आम आदमी
हट जा, हट जा, हट जा, हट जा।

धूल फाँक ले,
गला बन्द कर,
जिह्वा काट चढ़ा दे —
संसद की वेदी पर,
बलि का कर इतिहास रवाँ तू,
मोक्ष प्राप्त कर,
प्रजातन्त्र की ख़ास सवारी का —
पथ बन जा
हट जा, हट जा, हट जा, हट जा।

बच्चों की किलकारी बन्द कर
राग भारती की वेला है
शोषण का आलाप रोक दे
राष्ट्र-एकता का रथ पीछे मुड़ जाएगा,
क्लिण्टन-मूड बिगड़ जाएगा,
गर्बाचोफ़ शिरासन करता रुक जाएगा…
आँख मून्दकर —
भज हथियारम्,
कारतूस का पाउडर बन जा,
हत्यारों के नवसर्कस में
हिटलर का तू हण्टर बन जा
हट जा, हट जा, हट जा, हट जा।

सोच समझ के —
हेर फेर में —
मत पड़ —
सुन ले —
मतपेटी के बाहर लिखा है —
‘ठप्पा कहाँ लगाना लाज़िम’,
राजकाज के —
तिरुपति मन्दिर —
की हुण्डी में
सत्य वमन कर
हल्का हो जा,
आँतों पर
सत्ता का लेपन —
कर, सो जा निफराम नींद तू,
मल्टीनेशन के अल्टीमेटम को सुनकर
पूजा कर तू विश्व-बैंक की
कर्ज़ों का इतिहास रवाँ कर
महाजनी परमारथ बन जा
हट जा, हट जा, हट जा, हट जा, हट जा।

कला फला का,
न्याय फाय का,
अदब वदब का,
मूल्य वूल्य का,
जनहित-वनहित,
जनमत-फनमत
सब शब्दों का इन्द्रजाल है
इसमें मत फँस,
कलदारी खड़ताल बजा ले,
कीर्तन में लंगड़ी भाषा सुन,
सुप्त सरोवर में गोते खा,
धूप, दीप, नैवेद्य सजाकर
राजा जी की गुण-गीता गा…
आम आदमी
ख़ास भरोसे,
राम भरोसे जगती को कर,
जनाधार का ढोल पीटकर,
परिवर्तन की मुश्क बाँध ले,
सावधान बन,
शासन जी की इच्छाओं का
प्रावधान बन,
शासित हो, अनुशासित हो जा,
जाग छोड़ दे, नींद पकड़ ले,
अपना आपा आप जकड़ ले,
आत्महन्ता वर्जिश करके —
‘एज डिजायर्ड’ शराफ़त बन जा
‘हिस्टोरिकल’ हिक़ारत बन जा
आदमख़ोर हिमाक़त बन जा
रक्त-राग की संगत बन जा
हरी अप
हरी अप
हरी अप
हरी अप
भू देवों के नेक इरादों पर तू डट जा
हट जा, हट जा, हट जा, हट जा।

कुबेर दत्त
(1 जनवरी 1949 - 2 अक्टूबर 2011) जनवादी लेखक संघ हिन्दी के मशहूर कवि