जिस्म और लिबास का जो रिश्ता होता है
वही रिश्ता होता है सच और झूठ का
ढकना, और चुभना

हमला जिस्म में नहीं, हमला लिबास में है
अदावत सच में नहीं, अदावत झूठी है

तुम्हारे लिबास के रंग
नहीं दिखाते जिस्म के दाग़
नहीं ढकते अख़लाक़;
एक झूठ न बोल कर
नहीं हो जाता सच नंगा
नहीं बन जाते तुम देवता…

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सहज अज़ीज़
नज़्मों, अफ़सानों, फ़िल्मों में सच को तलाशता बशर। कला से मुहब्बत करने वाला एक छोटा सा कलाकार।

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