छत के उपर, काँव-काँव कर
कौआ शोर मचाता है
ढीठ बना वो बैठा रहता
कोयल को बहुत सताता है
कोयल बोली-
कितनी मीठी मेरी बोली
सबका मन हर्षाती है
तेरी बोली इतनी कर्कश
मेरी बहुत लुभाती है
मुझे बैठने दे आँगन में
तू पीछे क्यों आता है
जा उड़ जा कौए, काँव-काँव कर
क्यों सबके कान चबाता है?

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