पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने!
काले घर में सूरज रख के
तुमने शायद सोचा था मेरे सब मोहरे पिट जाएँगे
मैंने एक चराग़ जला कर
अपना रस्ता खोल लिया

तुमने एक समुंदर हाथ में लेकर मुझ पर ढील दिया
मैंने नूह की कश्ती ऊपर रख दी

काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा
मैंने काल को तोड़ के लम्हा लम्हा जीना सीख लिया

मेरी ख़ुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा
मेरे इक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया

मौत को शह देकर तुमने समझा था अब तो मात हुई
मैंने जिस्म का ख़ोल उतार के सोंप दिया… और रूह बचा ली!

पूरे का पूरा आकाश घुमाकर अब तुम देखो बाज़ी!!

Book by Gulzar:

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गुलज़ार
ग़ुलज़ार नाम से प्रसिद्ध सम्पूर्ण सिंह कालरा (जन्म-१८ अगस्त १९३६) हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं। इसके अतिरिक्त वे एक कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक तथा नाटककार हैं। गुलजार को वर्ष २००२ में सहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष २००४ में भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है।

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