कोई अधूरा पूरा नहीं होता
और एक नया शुरू होकर
नया अधूरा छूट जाता
शुरू से इतने सारे
कि गिने जाने पर भी अधूरे छूट जाते
परन्तु इस असमाप्त
अधूरे से भरे जीवन को
पूरा माना जाए, अधूरा नहीं
कि जीवन को भरपूर जिया गया
इस भरपूर जीवन में
मृत्यु के ठीक पहले भी मैं
एक नयी कविता शुरू कर सकता हूँ
मृत्यु के बहुत पहले की कविता की तरह
जीवन की अपनी पहली कविता की तरह
किसी नये अधूरे को अन्तिम न माना जाए।
'प्रेम की जगह अनिश्चित है'