कोई अधूरा पूरा नहीं होता
और एक नया शुरू होकर
नया अधूरा छूट जाता
शुरू से इतने सारे
कि गिने जाने पर भी अधूरे छूट जाते

परन्तु इस असमाप्त
अधूरे से भरे जीवन को
पूरा माना जाए, अधूरा नहीं
कि जीवन को भरपूर जिया गया

इस भरपूर जीवन में
मृत्यु के ठीक पहले भी मैं
एक नयी कविता शुरू कर सकता हूँ
मृत्यु के बहुत पहले की कविता की तरह
जीवन की अपनी पहली कविता की तरह

किसी नये अधूरे को अन्तिम न माना जाए।

'प्रेम की जगह अनिश्चित है'

Book by Vinod Kumar Shukla:

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विनोद कुमार शुक्ल
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यासकार हैं! 1 जनवरी 1937 को भारत के एक राज्य छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में जन्मे शुक्ल ने प्राध्यापन को रोज़गार के रूप में चुनकर पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया! वे कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी हैं। उनके उपन्यासों ने हिंदी में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी है। उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-ढांचे का आविष्कार किया है।

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