‘Maa Ki Yaad’, a poem by Viren Dangwal

क्या देह बनाती है माँओं को?
क्या समय? या प्रतीक्षा? या वह खुरदरी राख
जिससे हम बीन निकालते हैं अस्थियाँ?
या यह कि हम मनुष्य हैं और एक
सामाजिक-सांस्कृतिक परम्परा है हमारी
जिसमें माँएँ सबसे ऊपर खड़ी की जाती रही हैं
बर्फ़ीली चोटी पर,
और सबसे आगे
फ़ायरिंग स्क्वैड के सामने।

यह भी पढ़ें:

ऋतुराज की कविता ‘माँ का दुःख’
विजय राही की कविता ‘बारिश और माँ’

Book by Viren Dangwal:

Previous articleये मेरा संविधान है
Next articleवो रेल का जनरल डिब्बा
वीरेन डंगवाल
वीरेन डंगवाल (५ अगस्त १९४७ - २८ सितंबर २०१५) साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि थे। बाईस साल की उम्र में उन्होनें पहली रचना, एक कविता, लिखी और फिर देश की तमाम स्तरीय साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लगातार छपते रहे। उन्होनें १९७०-७५ के बीच ही हिन्दी जगत में खासी शोहरत हासिल कर ली थी। विश्व-कविता से उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत के अपनी विशिष्ट शैली में कुछ दुर्लभ अनुवाद भी किए हैं। उनकी ख़ुद की कविताओं का भाषान्तर बाँग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, मलयालम और उड़िया जैसी भाषाओं में प्रकाशित हुआ है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here