मैं इक फेरीवाला
बेचूँ यादें
सस्ती-महँगी, सच्ची-झूठी, उजली-मैली, रंग-बिरंगी यादें
होंठ के आँसू
आँखों की मुस्कान, हरी फ़रियादें
मैं इक फेरी वाला
बेचूँ यादें!

यादों के रंगीन ग़ुबारे
नीले-पीले, लाल-गुलाबी
रंग-बिरंगे धागों के कंधों पर बैठे खेल रहे हैं
ठेस लगी तो चीख़ उठेंगे
धागे की गर्दन से चिमटकर रह जाएँगे
मैं फिर इन रंगीं धागों में यादों के कुछ नए ग़ुब्बारे बाँध के गलियों-बाज़ारों से
कच्चे-पक्के दरवाज़ों से
आवाज़ें देता गुज़रूँगा
सस्ती-महँगी झूठी-सच्ची, उजली-मैली यादें ले लो
होंठ के आँसू
आँखों की मुस्कान, हरी फ़रियादें ले लो!

Book by Rahi Masoom Raza:

राही मासूम रज़ा
राही मासूम रज़ा (१ सितंबर, १९२५-१५ मार्च १९९२) का जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ था और आधा गाँव, नीम का पेड़, कटरा बी आर्ज़ू, टोपी शुक्ला, ओस की बूंद और सीन ७५ उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।