‘Muhabbat Ki Daleel’, a poem by Vijay Sharma

क़ैस ने इश्क़ किया
पर शायरी नहीं
उसने लैला की बातें
हवाओं से, बगूलों से, दरख़्तों से और बेलों से, फूलों से और ख़ुशबू से कही

क़ैस ने इश्क़ किया
और अपने इश्क़ में क़ुदरत को शामिल किया
मैंने शायरी की,
मेरी शायरी में भी हवाएँ, बगूले, दरख़्त, बेलें, फूल और ख़ुशबू शामिल हुई
तब मैंने इश्क़ नहीं किया

मैंने जब इश्क़ किया
तो उसमें शामिल हुए
तोहफ़े, मुलाक़ात के तयशुदा वक़्त, आज़माइश,
अनचाहे लोग और वो सारी दुनियावी शय
जो कभी मुहब्बत की दलील नहीं हो सकती…

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शाहबाज़ रिज़वी की नज़्म ‘हमारे साथ मोहब्बत का राब्ता कैसा’
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