‘Mukti’, a poem by Deepak Singh

स्वयं से मिलने की यात्रा
मुक्ति की यात्रा है!

मैं मुक्त होना चाहता हूँ
किन्तु
तुम्हें भूलना नहीं चाहता

याद है तुम्हें?
तुम मुझे यात्री कहकर
पुकारती थीं

मैं जानता हूँ अब यात्री होने का मतलब

कल मिला था
एक
बौद्ध भिक्षु,
उसने मेरी आत्मा को कपड़ों से अलग किया

और कहा
तुम्हारी आत्मा पर
प्रेम के छाले हैं

आत्मा पर घाव लिए मुक्ति नहीं मिल सकती!

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दीपक सिंह
कवि और लेखक। विभिन्न प्लेटफॉर्म पर कविताएँ एवं लघु प्रेम कहानियाँ प्रकाशित। बिहार के कोसी प्रभावित गाँवों में सामाजिक और आर्थिक रूप से शोषित लोगों के लिए अपनी सेवा में कार्यरत।

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