सखी री, नैना भये सराय
अँसुवन का तो ठौर हो गया
इक आवे इक जाय
सखी री…

दो नैना आपस में लड़ गए
इक झुक गए, इक तकते रह गए
ओढ़ पिया के रंग की चुनरिया
गोरी मंद-मंद मुस्काय

दिन मदहोश, सपन सी रातें
साँझ गुलाबी, ग़ज़ल सी बातें
कंगन के नग में साजन की
सूरत परखी जाय

वो दिन गुज़रे रातें भी गुज़रीं
सब रह गया बाबुल की नगरी
थाम पिया की ऊँगली चल दी
देहरी छूटी जाय

बिन तेरे सुन ओ निर्मोही
रह जायेगी साध अधूरी
झरते जब पेड़ों से महुए
दिल से उठती हाय

सखी री, नैना भये सराय…

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