विवरण: एक बदले ज़माने और बदले परिवेश में कुछ ऐसा भी होता है जो उसे पूरी तरह अजनबी नहीं होने देता, बल्कि पूर्व से वर्तमान को किसी पुल की तरह जोड़ता प्रतीत होता है। ऐसा जिन युवा रचनाकारों को पढ़कर, उनसे बात करते या उनका कहा सुनते मुझे लगा है उनमें अनघ महत्त्वपूर्ण हैं। ऐसा इस कारण नहीं कि वे बीते ज़माने (एक प्रकार से मेरा ज़माना) से सम्बद्ध विषयों या एक प्रकार का नॉस्टेल्जिया-ग्रस्त लेखन करते हों। वह उस जीवन और उन समस्याओं को ही विषय बनाते हैं जो उन्हें खुद दरपेश हैं, और खुद मेरे लिए अपने लेखन में जिनकी कल्पना सम्भव नहीं। ऐसा शायद इस कारण है कि उनके लेखन का मुख्य स्वर समानुभूति (एम्पथी) का स्वर होता है जिसे अभिव्यक्त करने की उनके पास सही-सही भाषिक कुशलता है। आश्चर्य होता था (जो अब किसी हद तक होना बन्द हो गया है) कि यह योग्यता अधिकांश ऐसे लोगों में होती है जो साहित्य को शिक्षा का एक विषय मानकर नहीं पढ़ते, न उसमें डिग्रीयाफ्ता होते हैं। शायद इस कारण वे अपने विषय और भाषा में अपनाइयत को ज़्यादा सहज रूप से पाठक के सामने रख सकते हैं। अनघ एक भागदौड़-भरा व्यस्त जीवन जीते हुए अपना लेखन करते हैं, जिसमें असंख्य सम्भावनाएँ हैं। उनकी भाषा विशेषकर आकर्षित करती है जिसमें संवाद और विवरण के बीच वह एक प्रकार का विशेष सन्तुलन बनाकर चलते हैं!

  • Paperback: 158 pages
  • Publisher: Rajkamal Prakashan (1 January 2019)
  • Language: Hindi
  • ISBN-10: 9388753569
  • ISBN-13: 978-9388753562
पोषम पा
सहज हिन्दी, नहीं महज़ हिन्दी...