जैसे ही मालूम हुआ
के ज़िल्ले इलाही नालाँ हैं
तो सदरे महकमा सूट पहन तैयार हुए
और
मातहती के फ़र्ज़ निभाकर
सर को झुकाकर
बोझल क़दमों वापस आये
रात में ख़ाली सूप पिया
और ख़बरें सुनकर लेट गए
अगले दिन इक वफ़्द बुलाया
अपने मातहतों को नाहक़
ख़ूब डराया और धमकाया
चीख़े बिगड़े शोर मचाया
सब की धड़कन साफ़ सुनी
और मेज़ पे ज़ोर से मुक्का मारा
कॉफ़ी ठंडी ख़ाक हो गई
सुबह हुई तो
अफ़सरे आला
लम्बा चौड़ा खर्रा लाए
इक इक कापी बाँटी
ख़ासा डाँट डपट कर
उजरत काटी
सब के दस्तख़त जमा किए
और मोहर लगायी
सब को काहिल सुस्त बताया
चूज़ा भी चूँ कर ना पाया
उसी दोपहर
सारे किलर्कों ने ग़म बहलाने की ख़ातिर
चाय के कुल्हड़
कूड़ेदान के बाहर फेंके
पान की पीक से ज़ीने की दीवार रंगी
और रात गये तक लता रफ़ी के गीत बजाए
सुबह सवेरे
चपरासी को तब तक डाँटा
जब तक उसकी सारी अना को मार ना डाला
ख़ुद पे भरोसा हार ना डाला
उसी शाम
उस चपरासी ने
देसी मय पी
नाली की कीचड़ से लिथड़ा
रात दस बजे घर पहुँचा
और सब बच्चों पर हाथ उठाया
बीवी को भी मार गिराया।