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रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ
कविता: रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़ मर न जाओ ('You Start Dying Slowly')
कवयित्री: मार्था मेदेरुस (Martha Medeiros)
अनुवाद: असना बद्र
तो रफ़ता-रफ़ता यूँ ही किसी रोज़...
आदमीनामा
मेरी प्यारी औरत उषा सिंगर लेकर क्या समझीं
सीने वाले सूट कमीज दोशाले हम ही होते हैं
घर की हांडी भून के किस ख़ुशफ़हमी में तुम...
अँधेरे से उजाले की सिम्त
मूल रचना: 'अँधेरे से उजाले की ओर' - अनुराधा अनन्या
रूपान्तरण: असना बद्र
मुँह अँधेरे घर के सारे काम करके
दूर के स्कूल जाती बच्चियाँ
धूप में तपता हुआ...
ऑफ़िस-ऑफ़िस
जैसे ही मालूम हुआ
के ज़िल्ले इलाही नालाँ हैं
तो सदरे महकमा सूट पहन तैयार हुए
और
मातहती के फ़र्ज़ निभाकर
सर को झुकाकर
बोझल क़दमों वापस आये
रात में ख़ाली सूप...
जंग
जंग इक जोश है
आग है, रोष है
बस उन्हीं के लिए
जिनको सरहद पे गोली चलाना नहीं
जिनके सीने किसी का निशाना
नहीं
जंग सौभाग है
जज़्ब है, त्याग है
बस उन्हीं के...
अभी से कौन मरता है?
गुलाबी सुर्ख़ नीली सब्ज़
मेरे पास हर मौसम की साड़ी है
बनारस
और कोटा सिल्क की
मैसूर की साड़ी
दिवाली, ईद, होली की शबे आशूर की साड़ी
दोपट्टे जो चुने...
वो कैसी औरतें थीं?
'Wo Kaisi Auratein Thin', a nazm by Asna Badar
वो कैसी औरतें थीं...?
जो गीली लकड़ियों को फूँककर चूल्हा जलाती थीं
जो सिल पर सुर्ख़ मिर्चें पीसकर...