तालियों से बजे पत्ते
नीम के।

अनवरत चलती रही थी, थक गयी,
तनिक आवे पर ठहरकर पक गयी,
अब चढ़ी है हवा हत्थे
नीम के।

था बहुत कड़वा मगर था काम का
था यहाँ यशगान इसके नाम का
आ गए दुर्दिन निहत्थे
नीम के।

ज़िन्दगी भर धूप में जलता रहा
आँधियों में शान से हिलता रहा
पड़ गए मुँह पर चकत्ते
नीम के।

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