दीवार पर टंगी घड़ी
कहती— “उठो अब वक़्त आ गया।”
कोने में खड़ी छड़ी
कहती— “चलो अब, बहुत दूर जाना है।”
पैताने रखे जूते पाँव छूते—
“पहन लो हमें, रास्ता ऊबड़-खाबड़ है।”
सन्नाटा कहता— “घबराओ मत
मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
यादें कहतीं— “भूल जाओ हमें अब,
हमारा कोई ठिकाना नहीं।”
सिरहाने खड़ा अन्धेरे का लबादा
कहता— “ओढ़ लो मुझे
बाहर बर्फ़ पड़ रही
और हमें मुँह-अन्धेरे ही निकल जाना है…”
एक बीमार
बिस्तर से उठे बिना ही
घर से बाहर चला जाता।
बाक़ी बची दुनिया
उसके बाद का आयोजन है।