लालच और नफ़रत की आंधी है
फ़ोटू में गांधी है
और बाज़ार ही बाज़ार है
ऐसे में वह दिन आता है
जब युद्ध ज़रूरी हो जाता है
नज़रें बचाते हुए
कहते हैं युद्ध अब ज़रूरी है
वह दिन आता है
जब एक जड़ इबारत
भावनाओं की जगह उमड़ती है
और घेर लेती है
जब एक निनादित नाम
और सामूहिक अहंकार होता है
जब अच्छाइयॉं
बिना लड़े हारती हैं
जब कोई किसी को कुचलता
चला जाता है
और कोई ध्यान नहीं देता
तब एक दिन आता है
जब सेना के मार्च का इंतज़ार करते हैं
बत्तियॉं बुझा लेते हैं
और कहते हैं प्यार करते हैं!
नवीन सागर की कविता 'अपना अभिनय इतना अच्छा करता हूँ'