रहीं अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रहीं अछूती…

साधों की रसमस माटी
फेरी साँसों के चाक पर,
क्वांरा रूप उभार दिया
सतरंगी सपने आँककर

हाट सजायी
आहट सुनने
कंगनिया झन्कार की…
रहीं अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रहीं अछूती…

अलसायी ऊषा छूदे
मुस्का मूंगाये छोर से,
मेहँदी के संकेत लिखे
संध्या पाँखुरिया पोर से
चौराहे रख दी
बंधने को
बाँहों में पनिहार की…
रहीं अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रहीं अछूती…

हठी चितेरा प्यासा ही
बैठा है धुन के गाँव में,
भरी उमर की बाज़ी पर
विश्वास लगे हैं दाँव में

हार इसी आँगन
पंचोली
साधे राग मल्हार की…
रहीं अछूती
सभी मटकियाँ
मन के कुशल कुम्हार की
रहीं अछूती…

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हरीश भादानी
(11 जून 1933 - 2 अक्टूबर 2009)

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