रोटियों पर ख़ून के छींटें हैं

हम ने तस्वीर देखी है
कटे हुए अंगों
सर, पैर, हाथ, बीच से
दो टुकड़े हुए शरीर पर
हरी-हरी घास डाल दी गई है

इन्हीं हरी घासों, पेड़ों, खलिहानों
के स्वप्न लिए वे थककर सो गए थे
जब उनके ऊपर से विकास की ट्रेन
किसी धन्ना सेठ का माल ढोते
दनदनाती गुज़र गई

प्रधानमन्त्री आवास पर, नाश्ते की ट्रे में
सजे मक्खन की तरह कटते चले गए उनके जिस्म
बिखरा हुआ ख़ून बची-खुची रोटियों पर नक़्श हो गया

वे सब मेरे लोग थे
उबलते ख़ून से उठती हुई भाप
मेरी आँखों से बह रही है…

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उसामा हमीद
अपने बारे में कुछ बता पाना उतना ही मुश्किल है जितना खुद को खोज पाना.

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