‘Samay, Umr, Man’, a poem by Niki Pushkar

समय उम्र को
जीवन की मुख्य सड़क पर
आगे कहीं और आगे
ले जाता रहा
और मन… वहीं,
तरुणाई की पगडण्डियों पर
विचरता रह गया…।

उम्र स्वभाव में
गम्भीरता लाती रही
और अनुभव
विचारों में परिपक्वता
गुज़रते समय के साथ
आ गयी धीरता, कुशलता
पर अन्तस में कहीं
अभी भी,
साँस लेती है अल्हड़ता

अतीत कभी साथ छोड़ता नहीं
और मन किशोर-वय से
मुँह मोड़ता नहीं
वह अब भी उस एक अहसास के
नुक्कड़ पर ठहरा है
जहाँ से दशकों पहले गुज़रा था…

ज़ुल्फ़ों में सितारे
अठखेलियाँ करने लगे
चेहरे पर प्रौढ़ता हँसने लगी
सब तो बदल गया है,
जगह, हालात, देह की रंगत…
बस नहीं बदला तो एक यही,
कमबख़्त दिल…।

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निकी पुष्कर
Pushkarniki [email protected] काव्य-संग्रह -पुष्कर विशे'श'

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