Tag: Niki Pushkar

Woman india

तरुणियाँ

उनमें देखी गईं सम्भावनाएँ खोजे गए अवसर, कब, कैसे, कहाँ व्यवहार में लायी जा सकती थी उनकी जाति— इसका गरिमायुक्त सावधानी के साथ प्रयोग किया गया उनको दो राज्यों की...
Bound, Free

ग़ुलाम आज़ादी

मंगतराम ने दी है अपनी औरत को आज़ादी नौकरी करने की सुबह सवेरे जब मास्टरनी बीवी चली जाती है स्कूल मंगतराम दुकान पर जमाता है महफ़िल, ताश पत्तों संग ख़ूब हँसी-ठिठोली...

गति

'Gati', a poem by Niki Pushkar हृदय-वाहिनी पर जगह-जगह अपमान के बाँधों ने मन-तरंग रुद्ध किए विषाक्त हो रहा था अन्तस-सरोवर इस दूषण से आहत हुए उर-शैवाल, मरने लगी भावनाओं की मीन, हिय-तरिणी...

दोहरी तकलीफ़

'Dohri Takleef', a poem by Niki Pushkar तुम्हें अपशब्दों से अपमानित कर कोई ख़ुशी नहीं मिलती मुझे मक़सद सिर्फ़ तुम्हें भी उतना ही अपमानित महसूस करवाना होता है, जितना मुझे होता है तुम्हारी...

तुम्हें चाहिए

'Tumhein Chahiye', a poem by Niki Pushkar जब कहा जाता है कि अब फ़ोन करने की ज़रूरत नहीं, तब परोक्ष रूप से यह उलाहना होता है कि इतनी...
Man Woman

प्रणय-व्यूह

व्यूह बहुत पहले रचा जा चुका होता है जाने कितने दिवसों से चतुरता और कुटिलता मिलकर रणनीति तय करते हैं तब एक प्रणय-षड्यंत्र तैयार किया जाता है प्रेयस एक...

तब आना

'Tab Aana', a poem by Niki Pushkar अब आए हो? इतनी देर से? जब वयस-भानु अस्ताँचल में जाने को है अब कौन तुम्हारा स्वागत करेगा पुष्प अपनी पंखुड़याँ समेटे सोने को हैं...

मैं नहीं, तुम

'Main Nahi, Tum', a poem by Niki Pushkar हाँ, वह व्यक्तित्व का गाम्भीर्य ही था कि जिसके सम्मुख मुखर होता गया निरा संकोची स्वभाव, वह अटल धैर्य का सान्निध्य...
Dream

दो दुनिया

'Do Duniya', a poem by Niki Pushkar मेरी यह यात्रा दो दुनिया की है एक दुनिया, जो मेरे अन्तस की है जहाँ, ख़याली-आवास है मेरा वहाँ तुम्हारी नागरिकता बेशर्त मान्य...

मैं ही हूँ

'Main Hi Hoon', a poem by Niki Pushkar मेरी कविताओं में अक्सर मेरा अन्वेषण होता रहा है नायिका के चरित्र में मेरे चरित्र का अनुसंधान किया जाता रहा संकेतात्मक प्रश्न...
Caged Bird, Freedom

तानाशाही

'Tanashahi', a poem by Niki Pushkar प्रकटतः जो सहज आकर्षण दिख रहा था वस्तुतः कलात्मक चतुराई थी। हृदय के रिक्त स्थान को समय-असमय अपनी उपस्थिति से भरा गया और फिर बड़ी...
Poems by Niki Pushkar

निकी पुष्कर की कविताएँ

Poems: Niki Pushkar आदत सहेजने की पुरानी आदत है मेरी तुमसे भी जब जो मिला, मैंने सहेजकर हृदय में रख लिया, तुम्हारी हर एक बात, हर एक भाव-भंगिमा, सारे संवाद, मुलाक़ात की तारीख़ें, मुलाक़ात...
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