वही—
जिसे भींच रहे हो मुट्ठी में
लेकिन जो टूट-बिखर जाता है बार-बार—
जीवन है।
कभी रेत और कभी बर्फ़
कभी आँच और कभी सुरसुरी की तरह
अँगुलियों के बीच रिसता, फिसलता, उड़ता
वह
जो इस किताब में बन्द है
या उस गुरुमन्त्र से फूट रहा है
या दौड़ रहा है पटरी पर
उसी का छूछा अवशेष है
वह जो मुट्ठी में आ गया है
उसी की याद है
जो भिंचता नहीं है मुट्ठी में।
गिरधर राठी की कविता 'अभीष्ट'