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Agyeya

शरणार्थी

1. मानव की आँख कोटरों से गिलगिली घृणा यह झाँकती है। मान लेते यह किसी शीत-रक्त, जड़-दृष्टि जल-तलवासी तेंदुए के विष नेत्र हैं और तमजात सब जन्तुओं से मानव...
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युद्ध-विराम

नहीं, अभी कुछ नहीं बदला है। अब भी ये रौंदे हुए खेत हमारी अवरुद्ध जिजिविषा के सहमे हुए साक्षी हैं; अब भी ये दलदल में फँसी हुई मौत की मशीनें उनके...
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क्योंकि मैं

क्योंकि मैं यह नहीं कह सकता कि मुझे उस आदमी से कुछ नहीं है जिसकी आँखों के आगे उसकी लम्बी भूख से बढ़ी हुई तिल्ली एक गहरी मटमैली पीली...
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मन बहुत सोचता है

मन बहुत सोचता है कि उदास न हो पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए? शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले, पर यह अपने...
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अच्छा खण्डित सत्य

अच्छा खण्डित सत्य सुघर नीरन्ध्र मृषा से, अच्छा पीड़ित प्यार सहिष्णु अकम्पित निर्ममता से। अच्छी कुण्ठा-रहित इकाई साँचे-ढले समाज से, अच्छा अपना ठाठ फ़क़ीरी मँगनी के सुख-साज से। अच्छा सार्थक मौन व्यर्थ के श्रवण-मधुर भी छन्द से। अच्छा निर्धन...
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तुम हँसी हो

तुम हँसी हो—जो न मेरे होंठ पर दीखे, मुझे हर मोड़ पर मिलती रही है। धूप—मुझ पर जो न छायी हो, किंतु जिसकी ओर मेरे रुद्ध जीवन की कुटी...
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उधार

सवेरे उठा तो धूप खिलकर छा गई थी और एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी। मैंने धूप से कहा : मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार? चिड़िया से...
Nirala, Agyeya, Vasant Ka Agradoot

वसंत का अग्रदूत

''इसीलिए मैं कल से कह रहा था कि सवेरे जल्दी चलना है, लेकिन आपको तो सिंगार-पट्टी से और कोल्ड-क्रीम से फ़ुरसत मिले तब तो! नाम 'सुमन' रख लेने से क्या होता है अगर सवेरे-सवेरे सहज खिल भी न सकें!''
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वेध्य

पहले मैं तुम्हें बताऊँगा अपनी देह का प्रत्येक मर्मस्थल फिर मैं अपने दहन की आग पर तपाकर तैयार करूँगा एक धारदार चमकीली कटार जो मैं तुम्हें दूँगा— फिर मैं अपने...
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मैं वहाँ हूँ

'Main Wahan Hoon' | a poem by Agyeya दूर दूर दूर... मैं वहाँ हूँ! यह नहीं कि मैं भागता हूँ— मैं सेतु हूँ—जो है और जो होगा...
Agyeya

यूरोप की छत पर : स्विट्ज़रलैण्ड

दुनिया की नहीं तो यूरोप की छत : अपने पर्वतीय प्रदेश के कारण स्विटजरलैण्ड को प्रायः यह नाम दिया जाता था—किन्तु हिमालय को घर...
Agyeya

मैंने पूछा क्या कर रही हो

मैंने पूछा यह क्या बना रही हो? उसने आँखों से कहा धुआँ पोछते हुए कहा- मुझे क्या बनाना है! सब-कुछ अपने आप बनता है मैंने तो यही जाना है। कह लो...
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