तुम हँसी हो—जो न मेरे होंठ पर दीखे,
मुझे हर मोड़ पर मिलती रही है।
धूप—मुझ पर जो न छायी हो,
किंतु जिसकी ओर
मेरे रुद्ध जीवन की कुटी की खिड़कियाँ खुलती रही हैं।

तुम दया हो जो मुझे विधि ने न दी हो,
किंतु मुझको दूसरों से बाँधती है
जो कि मेरी ही तरह इंसान हैं—
आँख जिनसे न भी मेरी मिले,
जिनको किंतु मेरी चेतना पहचानती है।

धैर्य हो तुम : जो नहीं प्रतिबिम्ब मेरे कर्म के धुँधले मुकुर में पा सका,
किंतु जो संघर्ष-रत मेरे प्रतिम का, मनुज का,
अनकहा पर एक धमनी में बहा संदेश मुझ तक ला सका,
व्यक्ति की इकली व्यथा के बीज को
जो लोक-मानस की सुविस्तृत भूमि में पनपा सका।

हँसी ओ उच्छल, दया ओ अनिमेष,
धैर्य ओ अच्युत, आप्त, अशेष।

अज्ञेय की कविता 'मैंने पूछा क्या कर रही हो'

Book by Agyeya:

अज्ञेय
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन "अज्ञेय" (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर बम बनाते हुए पकड़े गये और वहाँ से फरार भी हो गए। सन् 1930 ई. के अन्त में पकड़ लिये गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।