Tag: Amir Khusrow
अमीर ख़ुसरो की पहेलियाँ – 1
श्याम वरन और दाँत अनेक,
लचकत जैसे नारी,
दोनों हाथ से 'खुसरो' खींचे
और कहे तू आरी।
- आरी
इधर को आवे उधर को जावे,
हर-हर फेर काट वह खावें।
ठहर...
अमीर ख़ुसरो की पहेलियाँ
अमीर ख़ुसरो की पहेलियाँ - 1
अमीर ख़ुसरो की पहेलियाँ - 2
अमीर ख़ुसरो की पहेलियाँ - 3
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्या,
घुँघटा में आग लगा देती,
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी,
पिया प्यार को अपने मना लेती।
इन चुरियों की लाज पिया...
बन बोलन लागे मोर
आ घिर आई दई मारी घटा कारी। बन बोलन लागे मोर
दैया री बन बोलन लागे मोर।
रिम-झिम रिम-झिम बरसन लागी छाई री चहुँ ओर।
आज बन...
रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ
रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन-धन वाके भाग॥
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत...
बहुत दिन बीते पिया को देखे
बहुत दिन बीते पिया को देखे,
अरे कोई जाओ, पिया को बुलाय लाओ
मैं हारी, वो जीते, पिया को देखे बहुत दिन बीते।
सब चुनरिन में चुनर...
जब यार देखा नैन भर
जब यार देखा नैन भर, दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर।
जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा...
उल्टी वा की धार!
पानी से प्यास
और छुअन से बेकली
मिलन से बेचैनी
और आलिंगन से ताप
सब बढ़ रहा है
ख़ुसरो तुमने ठीक कहा था
इस नदी की धार उल्टी है!
झुलसे हुए पेड़
एक पेड़ गिराकर हर बार
मृत्यु की एक नयी परिभाषा गढ़ी जाती है
तुम्हारी छोड़ी गयी साँसों पर ही ज़िन्दा है जो
उसके काट दिये जाने से
उम्र...
सकल बन फूल रही सरसों
एक दिन खुसरो ने देखा कि कुछ औरतें, बनाव श्रंगार किए, पीले वस्त्र पहने, फूल लेकर गाती हुई जा रही हैं। खुसरो ने उनसे पूछा कि वे इस प्रकार बन-संवर कर पीले वस्त्र पहन कहाँ जा रही हैं तो औरतों ने कहा कि आज वसंत पंचमी है और वो अपने देवता को वसंत यानी पुष्प अर्पित करने जा रही हैं। खुसरो को ये बड़ा दिलचस्प लगा। उन्होंने तय कर लिया कि उनके गुरु को भी एक वसंत की जरूरत है।
खुसरो ने औरतों की तरह बनाव श्रंगार किया, पीले वस्त्र पहने और पीले-भूरे फूल लेकर नूह की कब्र की तरफ गाते हुए चल दिए, जहाँ निजामुद्दीन अकेले बैठे हुए थे। संत ने देखा कि कुछ औरतें गाती हुई उनकी तरफ आ रही हैं। लेकिन वे पहचान नहीं पाए कि उनमें खुसरो भी हैं। खैर कुछ देर तो वो चकित से देखते रहे लेकिन जल्द ही उन्हें माजरा समझ में आया और वो हँस पड़े। उनको हँसते देख खुसरो और उनके साथ आए अन्य संतों और सूफियों ने वसंत के गीत गाने आरंभ कर दिए। इन्हीं में से एक गीत था 'सकल बन फूल रही सरसों..'
बहुत कठिन है डगर पनघट की
बहुत कठिन है डगर पनघट की
बहुत कठिन है डगर पनघट की
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
पनिया भरन को मैं जो गई थी
दौड़ झपट...
चल खुसरो घर आपने
'Chal Khusro Ghar Aapne'
poetry by Amir Khusro
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग॥
खुसरो दरिया प्रेम...