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पिता
बूढ़े पिता अपना ज़िन्दगी जीने का ढंग नहीं छोड़ते। नई चीज़ें पसंद नहीं आती और पुराने से लगाव नहीं छूटता, चाहे कितनी भी असुविधा हो! नई और पुरानी पीढ़ी के इसी खिंचाव को रेखांकित करती है ज्ञानरंजन की कहानी 'पिता'। पढ़िए। :)
‘घर, माँ, पिता, पत्नी, पुत्र, बंधु!’ – कुँवर बेचैन की पाँच कविताएँ
कुँअर बेचैन हिन्दी की वाचिक परम्परा के प्रख्यात कवि हैं, जो अपनी ग़ज़लों, गीतों व कविताओं के ज़रिए सालों से हिन्दी श्रोताओं के बीच...
एक पेड़
(पापा के लिए)
एक पेड़
मेरी क्षमता में जिसका केवल ज़िक्र करना भर है
जिसे उपमेय और उपमान में बाँधने की
न मेरी इच्छा है, न ही सामर्थ्य
एक...