Tag: पिता

Father, Hands, Child, Hold

चार सौ छत्तीस दिन

मैं उन्हें चार सौ छत्तीस दिन गिनूँगा या थोड़े संकुचित मात्रक में क़रीब चौदह महीने गिनने को मैं गिन सकता था एक साल, दो महीने, बारह दिन पर...
Agyeya

चीनी चाय पीते हुए

चाय पीते हुए मैं अपने पिता के बारे में सोच रहा हूँ। आपने कभी चाय पीते हुए पिता के बारे में सोचा है? अच्छी बात नहीं है पिताओं के बारे...
Dream

स्वप्न के घोंसले

स्वप्न में पिता घोंसले के बाहर खड़े हैं मैं उड़ नहीं सकती माँ उड़ चुकी है कहाँ कुछ पता नहीं मेरे आगे किताब-क़लम रख गया है कोई और कह गया...
Nirmal Gupt

स्मृति में पिता

मेरे पिता सेवानिवृत्त हुए तो दफ़्तर की मेज़ पर रखे विदाई के सामान वहीं छोड़ आए, अपनी अधिकारिक अहमन्यता मोटे अक्षरों में छपी मानस की प्रति और नक़्क़ाशीदार फ़ोल्डिंग छड़ी भी दे...
Girl, Woman

पिता के घर में मैं

पिता क्या मैं तुम्हें याद हूँ? मुझे तो तुम याद रहते हो क्योंकि ये हमेशा मुझे याद कराया गया। फ़ासीवाद मुझे कभी किताब से नहीं समझना पड़ा। पिता...
Om Nagar

ओम नागर की कविताएँ

प्रस्तुति: विजय राही पिता की वर्णमाला पिता के लिए काला अक्षर भैंस बराबर। पिता नहीं गए कभी स्कूल जो सीख पाते दुनिया की वर्णमाला। पिता ने कभी नहीं किया काली...
Father Daughter, Girl, Kid

मुहर-भर रहे पिता

उन लड़कियों ने जाना पिता को एक अडिग आदेश-सा, एक मुहर-भर रहे पिता बेटियों के दस्तावेज़ों पर। कहाँ जाना, क्या खाना, क्या पढ़ना, निर्धारित कर, पिता ने निभायीं ज़िम्मेदारियाँ अपनी, बहरे रहे...
Old age, Hand

बुरा सपना

'Bura Sapna', a poem by Amar Dalpura मैं देख रहा हूँ बहुत पुरानी खाट पर पिता की नींद इस तरह चिपकी है जैसे नंगी पीठ पर नींद की करवटें...
Rahul Boyal

शिशुओं का रोना

'Shishuon Ka Rona', a poem by Rahul Boyal मेरी दृष्टि में सभी शिशुओं के रोने का स्वर तक़रीबन एक जैसा होता है और हँसने की ध्वनि भी लगभग...
Vivek Chaturvedi

पिता

'Pita', Hindi Kavita by Vivek Chaturvedi पिता! तुम हिमालय थे पिता! कभी तो कितने विराट पिघलते हुए से कभी बुलाते अपनी दुर्गम चोटियों से भी और ऊपर कि आओ- चढ़...
Nirmal Gupt

सम्वाद का पुल

'Samvad Ka Pul', a poem by Nirmal Gupt मैं लिखा करता था अपने पिता को ख़त जब मैं होता था उद्विग्न, व्यथित या फिर बहुत उदास, जब मुझे दिखायी देती थीं अपनी...
Nirmal Gupt

पिता और व्हीलचेयर

'Pita Aur Wheelchair', a poem by Nirmal Gupt पिता व्हीलचेयर पर बैठे थे एकदम इत्मिनान के साथ, उनके अलावा सबको पता था वह हो सकते हैं वहाँ से किसी पल...
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