‘Bura Sapna’, a poem by Amar Dalpura

मैं देख रहा हूँ
बहुत पुरानी खाट पर
पिता की नींद इस तरह चिपकी है
जैसे नंगी पीठ पर
नींद की करवटें उघड़ आती हैं

बेटी के ब्याह की चिंता में
बेटे की नौकरी की चिंता में
ज़मीन, फ़सल और बाड़े में बंधे पशुओं की चिंता में
रोज़ नींद टूट जाती है
वे जीवन-भर दुःखों की ज़मीन पर हँसते रहे,
मैं देखता रहा

फिर वे बण्डी और लाठी लेकर चले जाते हैं
खेतो में काम की चिंता में
बाड़े में भैस-बैलों की ओर
और मैं देखता हूँ

एक दिन खाट से उठकर लेट गए
मैं नहीं देख पाया साँसों को जाते हुए
अब मैं देखता हूँ खाट को…
घोर-अँधेरी रात में
पिता बैठे हुए नज़र आते हैं…

यह भी पढ़ें: अमर दलपुरा की कविता ‘ओढ़नी के फूल’

Recommended Book:

Previous articleप्लेन में दौड़ता बच्चा
Next articleटैगोर

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here