‘Odhani Ke Phool’, a poem by Amar Dalpura
साँस में साँस थी उसकी
इसी ऊर्जा से जीवन चलता रहा
वो नींद और रात को मुलायम बनाकर
बेतरतीब सपनों की सिलाई करती रही
मैं उसकी ओढ़नी के फूलों में
इस तरह लिपटा रहा
जैसे अधखिले फूल पर ओस सोयी है
हाथ में हाथ था उसका
इसी विश्वास पर पैर चलते रहे
एक पल तुम जियो
एक पल मैं जीती हूँ
दो पल की ज़िन्दगी को साथ जीते हुए
दिन-रात कटते रहे…
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