‘Shishuon Ka Rona’, a poem by Rahul Boyal

मेरी दृष्टि में
सभी शिशुओं के रोने का स्वर
तक़रीबन एक जैसा होता है
और हँसने की ध्वनि भी लगभग समान

किसी अंधेरी रात में
रो रहे हों यदि
तीन-चार शिशु एक साथ
तो क्या तुम पूरे विश्वास से
कह सकते हो कि
तुम्हारा बच्चा नहीं रो रहा?

सारे शिशुओं को भाती है
गोद की सघनता
और दुग्ध की तरलता
अस्वस्थ माँ में भी होती है अहर्ता
कि रोक सके वह
अपने शिशु का क्रन्दन

ओ पिताओ!
तुम भी अपनी बाँहें खोलो
घर के बाहर
अबोध शिशुओं का भयंकर क्रन्दन है,
माँ तो सदियों से बेचैन है
बच्चों के लिए,
क्या तुम निश्चिन्त हो कि
बाहर रोता बच्चा तुम्हारा नहीं है?

हमारे मुँह में ठूँसा हुआ है निवाले की तरह धर्म'

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राहुल बोयल
जन्म दिनांक- 23.06.1985; जन्म स्थान- जयपहाड़ी, जिला-झुन्झुनूं( राजस्थान) सम्प्रति- राजस्व विभाग में कार्यरत पुस्तक- समय की नदी पर पुल नहीं होता (कविता - संग्रह) नष्ट नहीं होगा प्रेम ( कविता - संग्रह) मैं चाबियों से नहीं खुलता (काव्य संग्रह) ज़र्रे-ज़र्रे की ख़्वाहिश (ग़ज़ल संग्रह) मोबाइल नम्बर- 7726060287, 7062601038 ई मेल पता- [email protected]

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