Tag: Kirti Chaudhary
कविताई काम नहीं आती
अब कविताई अपनी कुछ काम नहीं आती
मन की पीड़ा,
झर-झर शब्दों में झरती थी
है याद मुझे
जब पंक्ति एक
हलचल अशान्ति सब हरती थी
यह क्या से क्या...
प्यार करो
प्यार करो
अपने से
मुझसे नहीं
सभी से प्यार करो।
वह जो आँखों से दूर
उपेक्षित पड़ा हुआ,
वह जो मिट्टी की
सौ पर्तों में गड़ा हुआ।
वह जिसकी साँसें
अभी आश्रित जीती...
मुझे फिर से लुभाया
खुले हुए आसमान के छोटे-से टुकड़े ने,
मुझे फिर से लुभाया।
अरे! मेरे इस कातर भूले हुए मन को
मोहने,
कोई और नहीं आया।
उसी खुले आसमान के टुकड़े...
मन करता है
झर जाते हैं शब्द हृदय में
पंखुरियों-से
उन्हें समेटूँ, तुमको दे दूँ
मन करता है
गहरे नीले नर्म गुलाबी
पीले सुर्ख़ लाल
कितने ही रंग हृदय में
झलक रहे हैं
उन्हें सजाकर तुम्हें...
सीमा-रेखा
मृग तो नहीं था कहीं
बावले भरमते से इंगित पर चले गए।
तुम भी नहीं थे—
बस केवल यह रेखा थी
जिसमें बँधकर मैंने दुःसह प्रतीक्षा की—
सम्भव है...
मुझे मना है
बिखरा है रंग, रूप, गंध, रस मेरे आगे
मुझे मना है किंतु
गंध को अंग लगाना,
ख़ुशियों के चमकीले दामन को
आगे बढ़कर छू आना,
रस पीना, छक जाना,
लुब्ध...
केवल एक बात
केवल एक बात थी
कितनी आवृत्ति,
विविध रूप में कर के निकट तुम्हारे कही।
फिर भी हर क्षण,
कह लेने के बाद,
कहीं कुछ रह जाने की पीड़ा बहुत सही।
उमग-उमग...