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कवि
मेरे लिए कविता रचने का
कोई ख़ास क्षण नहीं।
मैं कोई गौरय्या नहीं
जो सूर्योदय और सूर्यास्त पर
घौंसले के लिए
चहचहाना शुरू कर दूँ।
समय ही ऐसा है
कि मैं...
कहाँ हो तुम
मृत्यु का भय
ईश्वर के भय को सींचता रहता है
ओ मेरे कवि
प्रार्थनाएँ करते-करते सदियों के पंख
झड़ चुके हैं
ऋतुचक्रों पर फफूँद बैठी है
ईश्वर ग़रीबों की तरफ़...
कामना
मैंने हर ढलती साँझ के समय
सदा सूर्योदय की कामना की है
जब सब छोड़कर चले गए
वृक्ष मेरे मित्र बने रहे
खुली हवा... निरभ्र आकाश में
साँस लेता...
वहाँ देखने को क्या था
मैं उन इलाक़ों में गया
जहाँ मकान चुप थे
उनके ख़ालीपन को धूप उजला रही थी
हवा शान्त, मन्थर—
अपने डैने चोंच से काढ़ने को
बेचैन थी
लोग जा चुके हैं
उन्हें कुछ...
धातुओं का गलता सच
हमारा प्यार—
सफ़ेद बादल नहीं
जिसे हवा चाहे जिधर
उड़ा ले जाए,
अब वह धातुओं में गलता सच है
जिसकी बंदिशें
वक़्त के सीने पर
उभरी दिखती हैं
जैसे रेत में सफ़ेद...