अगर बच सका
तो वही बचेगा
हम सब में थोड़ा-सा आदमी–

जो रौब के सामने नहीं गिड़गिड़ाता,
अपने बच्चे के नम्बर बढ़वाने नहीं जाता मास्टर के घर

जो रास्ते पर पड़े घायल को सब काम छोड़कर
सबसे पहले अस्पताल पहुँचाने का जतन करता है,
जो अपने सामने हुई वारदात की गवाही देने से नहीं हिचकिचाता

वही थोड़ा-सा आदमी–
जो धोखा खाता है पर प्रेम करने से नहीं चूकता

जो अपनी बेटी के अच्छे फ़्रॉक के लिए
दूसरे बच्चों को थिगड़े पहनने पर मजबूर नहीं करता

जो दूध में पानी मिलाने से हिचकता है,
जो अपनी चुपड़ी खाते हुए दूसरे की सूखी के बारे में सोचता है

वही थोड़ा-सा आदमी–
जो बूढ़ों के पास बैठने से नहीं ऊबता
जो अपने घर को चीज़ों का गोदाम होने से बचाता है

जो दुःख को अर्ज़ी में बदलने की मजबूरी पर दुःखी होता है
और दुनिया को नरक बना देने के लिए दूसरों को ही नहीं कोसता

वही थोड़ा-सा आदमी–
जिसे ख़बर है कि
वृक्ष अपनी पत्तियों से गाता है अहरह एक हरा गान,
आकाश लिखता है नक्षत्रों की झिलमिल में एक दीप्त वाक्य,
पक्षी आँगन में बिखेर जाते हैं एक अज्ञात व्याकरण

वही थोड़ा-सा आदमी–
अगर बच सका तो
वही बचेगा।

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अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी समकालीन हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। सामाजिक जीवन में व्यावसायिक तौर पर वाजपेयी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्वाधिकारी है, परंतु वह एक कवि के रूप में ज़्यादा जाने जाते हैं। उनकी विभिन्न कविताओं के लिए सन् १९९४ में उन्हें भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। वाजपेयी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के उपकुलपति भी रह चुके हैं। इन्होंने भोपाल में भारत भवन की स्थापना में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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