धरती के नीचे थोड़ा जीवन बाकी है
आकाश के ऊपर बची है थोड़ी उम्मीद
मगर इन दोनों के बीच बन चुका है
एक वैक्यूम
एक बड़ा शून्य
जिसमें बहुत शोर है
बहुत निराशा, बहुत गुस्सा है

मैं ढूँढ रही हूँ कोई बिंदु
जहाँ यह सारा शोर नियमित हो जाए
और एक ऐसा नाद बने
जो तानसेन का गुरूर और बैजू की कुंठा
एक साथ तोड़ सके
और वो बिंदु मिलते ही मैं ठीक उसी जगह
एक बहुत बड़ा छेद कर दूँ।

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