सारी लाशें उठकर चल पड़ेंगी
क़ब्र को चीरकर
सरहदों पर दफ़नाए गए सैनिक रो पड़ेंगें
दोनों ओर की ज़मीन से फूटेगा
ख़ून का एक दरिया
पेड़ों की पत्तियाँ हो जाएँगी सुर्ख़
सारे सफ़ेद कबूतर रंगों को अपने साथ लिए
इस दुनिया के परे उड़ जाएँगे
गर युद्ध होगा
युद्ध के बादल
गिद्धों को अपने साथ लेकर आएँगे
और वे ताकते रहेंगे ज़िंदा और मुर्दा लाशें

लोग बेतरतीब यहाँ वहाँ
भागेंगे बैलों की तरह
चिंता यह है कि इन सबके बीच
बच्चे कहाँ जाएँगे?
क्या करेंगे?

काश! प्रेम, इतना बचा रहे तब तक
कि युद्ध न होने के लिए युद्ध करता रहे
और खड़ा रहे अपनी छाती तानकर
और डरे नहीं

क्योंकि तब प्रेम ही एकमात्र बचा हुआ सफ़ेद ध्वज होगा!
जिसे हमें ही थामना होगा!

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मुदित श्रीवास्तव
मुदित श्रीवास्तव भोपाल में रहते हैं। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और कॉलेज में सहायक प्राध्यापक भी रहे हैं। साहित्य से लगाव के कारण बाल पत्रिका ‘इकतारा’ से जुड़े हैं और अभी द्विमासी पत्रिका ‘साइकिल’ के लिये कहानियाँ भी लिखते हैं। इसके अलावा मुदित को फोटोग्राफी और रंगमंच में रुचि है।

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