सच्‍चाइयाँ
जो गंगा के गोमुख से मोती की तरह बिखरती रहती हैं
हिमालय की बर्फ़ीली चोटी पर चाँदी के उन्‍मुक्‍त नाचते
परों में झिलमिलाती रहती हैं
जो एक हज़ार रंगों के मोतियों का खिलखिलाता समन्दर हैं
उमंगों से भरी फूलों की जवान कश्तियाँ
कि बसंत के नये प्रभात सागर में छोड़ दी गयी हैं।

ये पूरब-पच्छिम मेरी आत्‍मा के ताने-बाने हैं
मैंने एशिया की सतरंगी किरनों को अपनी दिशाओं के गिर्द
लपेट लिया
और मैं योरप और अमरीका की नर्म आँच की धूप-छाँव पर
बहुत हौले-हौले नाच रहा हूँ
सब संस्‍कृतियाँ मेरे सरगम में विभोर हैं
क्‍योंकि मैं हृदय की सच्‍ची सुख-शांति का राग हूँ
बहुत आदिम, बहुत अभिनव।

हम एक साथ उषा के मधुर अधर बन उठे
सुलग उठे हैं
सब एक साथ ढाई अरब धड़कनों में बज उठे हैं
सिम्फ़ोनिक आनंद की तरह
यह हमारी गाती हुई एकता
संसार के पंच-परमेश्‍वर का मुकुट पहन
अमरता के सिंहासन पर आज हमारा अखिल लोक-प्रेसिडेण्ट
बन उठी है।
देखो न हक़ीक़त हमारे समय की कि जिसमें
होमर एक हिन्दी कवि सरदार जाफ़री को
इशारे से अपने क़रीब बुला रहा है
कि जिसमें
फ़ैयाज़ ख़ाँ बिटाफ़ेन के कान में कुछ कह रहा है
मैंने समझा कि संगीत की कोई अमर लता हिल उठी
मैं शेक्‍सपियर का ऊँचा माथा उज्‍जैन की घाटियों में
झलकता हुआ देख रहा हूँ
और कालिदास को वैमर के कुँजों में विहार करते
और आज तो मेरा टैगोर मेरा हाफ़िज़ मेरा तुलसी मेरा
ग़ालिब
एक-एक मेरे दिल के जगमग पावर-हाउस का
कुशल ऑपरेटर है।

आज सब तुम्‍हारे ही लिए शांति का युग चाहते हैं
मेरी कुटूबुटू
तुम्‍हारे ही लिए मेरे प्रतिभाशाली भाई तेजबहादुर
मेरे गुलाब की कलियों से हँसते-खेलते बच्‍चों
तुम्‍हारे ही लिए, तुम्‍हारे ही लिए
मेरे दोस्‍तों, जिनसे ज़िन्दगी में मानी पैदा होते हैं
और उस निश्‍छल प्रेम के लिए
जो माँ की मूर्ति है
और उस अमर परमशक्ति के लिए जो पिता का रूप है।

हर घर में सुख
शांति का युग
हर छोटा-‍बड़ा हर नया-पुराना हर आज-कल-परसों के
आगे और पीछे का युग
शांति की स्निग्‍ध कला में डूबा हुआ
क्‍योंकि इसी कला का नाम जीवन की भरी-पूरी गति है।

मुझे अमरीका का लिबर्टी स्‍टैचू उतना ही प्‍यारा है
जितना मास्‍को का लाल तारा
और मेरे दिल में पेकिंग का स्‍वर्गीय महल
मक्‍का-मदीना से कम पवित्र नहीं
मैं काशी में उन आर्यों का शंखनाद सुनता हूँ
जो वोल्‍गा से आए
मेरी देहली में प्रह्लाद की तपस्‍याएँ दोनों दुनियाओं की
चौखट पर
युद्ध के हिरण्‍यकशिप को चीर रही हैं।
यह कौन मेरी धरती की शांति की आत्‍मा पर क़ुरबान हो
गया है
अभी सत्‍य की खोज तो बाक़ी ही थी
यह एक विशाल अनुभव की चीनी दीवार
उठती ही बढ़ती आ रही है
उसकी ईंटें धड़कते हुए सुर्ख़ दिल हैं
ये सच्‍चाइयाँ बहुत गहरी नींवों में जाग रही हैं
वो इतिहास की अनुभूतियाँ हैं
मैंने सोवियत यूसुफ़ के सीने पर कान रखकर सुना है।

आज मैंने गोर्की को होरी के आँगन में देखा
और ताज के साये में राजर्षि कुंग को पाया
लिंकन के हाथ में हाथ दिए हुए
और ताल्‍स्‍ताय मेरे देहाती यूपियन होंठों से बोल उठा
और अरागों की आँखों में नया इतिहास
मेरे दिल की कहानी की सुर्ख़ी बन गया
मैं जोश की वह मस्‍ती हूँ जो नेरुदा की भवों से
जाम की तरह टकराती है
वह मेरा नेरुदा जो दुनिया के शांति पोस्‍ट ऑफ़िस का
प्‍यारा और सच्‍चा क़ासिद
वह मेरा जोश कि दुनिया का मस्‍त आशिक़
मैं पंत के कुमार छायावादी सावन-भादों की चोट हूँ
हिलोर लेते वर्ष पर
मैं निराला के राम का एक आँसू
जो तीसरे महायुद्ध के कठिन लौह पर्दों को
एटमी सूई-सा पार कर गया पाताल तक
और वहीं उसको रोक दिया
मैं सिर्फ़ एक महान विजय का इंदीवर जनता की आँख में
जो शांति की पवित्रतम आत्‍मा है।

पच्छिम में काले और सफ़ेद फूल हैं और पूरब में पीले
और लाल
उत्तर में नीले कई रंग के और हमारे यहाँ चम्पई-साँवले
और दुनिया में हरियाली कहाँ नहीं
जहाँ भी आसमान बादलों से ज़रा भी पोंछे जाते हों
और आज गुलदस्‍तों में रंग-रंग के फूल सजे हुए हैं
और आसमान इन ख़ुशियों का आईना है।

आज न्‍यूयार्क के स्‍काईस्क्रेपरों पर
शांति के ‘डवों’ और उसके राजहंसों ने
एक मीठे उजले सुख का हलका-सा अँधेरा
और शोर पैदा कर दिया है
और अब वो आर्जन्‍टीना की सिम्‍त अतलांतिक को पार कर
रहे हैं
पाल राब्‍सन ने नयी दिल्‍ली से नये अमरीका की
एक विशाल सिम्फ़नी ब्राडकास्‍ट की है
और उदयशंकर ने दक्षिणी अफ़्रीका में नयी अजंता को
स्‍टेज पर उतारा है
यह महान नृत्‍य वह महान स्‍वन कला और संगीत
मेरा है यानी हर अदना से अदना इंसान का
बिलकुल अपना निजी।

युद्ध के नक़्शों को कैंची से काटकर कोरियायी बच्‍चों ने
झिलमिली फूलपत्तों की रौशन फानूसें बना ली हैं
और हथियारों का स्‍टील और लोहा हज़ारों
देशों को एक-दूसरे से मिलानेवाली रेलों के जाल में बिछ
गया है
और ये बच्‍चे उन पर दौड़ती हुई रेलों के डिब्‍बों की
खि‍ड़कियों से
हमारी ओर झाँक रहे हैं
वह फ़ौलाद और लोहा खिलौनों मिठाइयों और किताबों
से लदे स्‍टीमरों के रूप में
नदियों की सार्थक सजावट बन गया है
या विशाल ट्रेक्‍टर-कम्बाइन और फैक्‍टरी-मशीनों के हृदय में
नवीन छंद और लय का प्रयोग कर रहा है।

यह सुख का भविष्‍य शांति की आँखों में ही वर्तमान है
इन आँखों से हम सब अपनी उम्‍मीदों की आँखें सेंक
रहे हैं
ये आँखें हमारे दिल में रौशन और हमारी पूजा का
फूल हैं
ये आँखें हमारे क़ानून का सही चमकता हुआ मतलब
और हमारे अधिकारों की ज्‍योति से भरी शक्ति हैं
ये आँखें हमारे माता-पिता की आत्‍मा और हमारे बच्‍चों
का दिल हैं
ये आँखें हमारे इतिहास की वाणी
और हमारी कला का सच्‍चा सपना हैं
ये आँखें हमारा अपना नूर और पवित्रता हैं
ये आँखें ही अमर सपनों की हक़ीक़त और
हक़ीक़त का अमर सपना हैं
इनको देख पाना ही अपने-आपको देख पाना है, समझ
पाना है।

हम मनाते हैं कि हमारे नेता इनको देख रहे हों।

शमशेर बहादुर सिंह की कविता 'टूटी हुई, बिखरी हुई'

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शमशेर बहादुर सिंह
शमशेर बहादुर सिंह 13 जनवरी 1911- 12 मई 1993 आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के एक स्तंभ हैं। हिंदी कविता में अनूठे माँसल एंद्रीए बिंबों के रचयिता शमशेर आजीवन प्रगतिवादी विचारधारा से जुड़े रहे। तार सप्तक से शुरुआत कर चुका भी नहीं हूँ मैं के लिए साहित्य अकादमी सम्मान पाने वाले शमशेर ने कविता के अलावा डायरी लिखी और हिंदी उर्दू शब्दकोश का संपादन भी किया।